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राजा॑ना॒वन॑भिद्रुहा ध्रु॒वे सद॑स्युत्त॒मे। स॒हस्र॑स्थूण आसाते॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

rājānāv anabhidruhā dhruve sadasy uttame | sahasrasthūṇa āsāte ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

राजा॑नौ। अन॑भिऽद्रुहा। ध्रु॒वे। सद॑सि। उ॒त्ऽत॒मे। स॒हस्र॑ऽस्थूणे। आ॒सा॒ते॒ इति॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:41» मन्त्र:5 | अष्टक:2» अध्याय:8» वर्ग:7» मन्त्र:5 | मण्डल:2» अनुवाक:4» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अनभिद्रुहा) द्रोहकर्मरहित (राजानौ) प्रकाशमान जनो ! तुम (ध्रुवे) जो कि निश्चल (उत्तमे) श्रेष्ठ (सहस्रस्थूणे) जिसमें सहस्र खम्भा विद्यमान उस (सदसि) सभा में जो प्राणोदानवद्वर्त्तमान अध्यापकोपदेशक (आसाते) बैठते हैं, उनको जानो ॥५॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! वे ही राजा और प्रधान पुरुष धन्यवाद के योग्य होते हैं, जो गुणयुक्त उत्तम सभा में बैठके किसी का पक्षपात कभी न करें ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे अनभिद्रुहा राजानौ युवां ध्रुवं उत्तमे सहस्रस्थूणे सदसि यौ मित्रावरुणावासाते तौ विजानीतम् ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (राजानौ) प्रकाशमानौ (अनभिद्रुहा) द्रोहकर्मरहितौ (ध्रुवे) निश्चले (सदसि) सभास्थाने (उत्तमे) श्रेष्ठे (सहस्रस्थूणे) सहस्राणि स्थूणाः स्तम्भाः यस्मिँस्तस्मिन् (आसाते) उपविशतः ॥५॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यास्तावेव राजप्रधानपुरुषौ धन्यवादमर्हतः यौ गुणाढ्यायामुत्तमानां सभायां स्थित्वा कस्यचित् पक्षपातं कदाचिन्न कुर्याताम् ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! जे गुणवानांच्या उत्तम सभेमध्ये कुणाबरोबरही भेदभावाने वागत नाहीत तेच राजा व प्रधान धन्यवादास पात्र आहेत. ॥ ५ ॥